भारत में यूं तो नदियों को जोड़ने की योजना का विचार 161 साल पुराना है लेकिन देश में सूखे से निपटने के लिए पानी की कमी को पूरा करने और पानी के विरतण को ध्यान में रखते हुए 1999 में एनडीए सरकार बनने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सबसे पहले नदी जोड़ो परियोजना पर काम शुरू किया था। हालांकि 2004 में एनडीएन सरकार जाते ही यह योजना फिर ठंडे बस्ते में चली गई। मगर वर्ष 2014 में दिल्ली में नरेंद्र मोदी सरकार बनने के बाद प्रधानमंत्री ने अपने वरिष्ठ नेता के सपने को साकार करने के लिए मोदी सरकार ने नदी जोड़ो अभियान को अपनी प्राथमिकता में रखा है। नेशनल वाटर डेवलपमेंट एजेंसी ने देश में 31 नदी जोड़ो परियोजनाएं प्रस्तावित की हैं। मोदी सरकार अब इस निर्णय को आगे बढ़ाते हुए देश में पेयजल परियोजनाओं पर काम कर रही है। इसी के तहत राजस्थान के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा भी प्रदेश में जनता से किये मोदी सरकार के वादे को निभाने के लिए आगे बढ़े और मध्यप्रदेश और राजस्थान के बीच जारी 20 साल पुराना विवाद सुलझाते हुए पार्वती-कालीसिंधु-चंबल (पीकेसी) नदियों को जोड़ने का समझौता कराने में अहम रोल निभाया।
पूर्वी राजस्थान के लिए भागीरथ बने भजनलाल शर्मा
राजा भगीरथ जिस तरह गंगा जी को कड़ी तपस्या के बाद धऱती पर लाए थे वैसे ही कड़े तप और सालों के इंतज़ार के बाद पूर्वी राजस्थान के लोगों के लिए ईआरसीपी के सपने को साकार करने वाले भागीरथ बने हैं राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने सत्ता में आते ही केंद्रीय जल शक्ति मंत्री के नेतृत्व में प्रोजक्ट पर सक्रियता बढ़ी। इस अहम परियोजना को पूरा करने के लिए राजस्थान और मध्यप्रदेश सरकार के बीच सहमति बनाने के लिए बैठक आयोजित की गयी। जिसके बाद केन्द्र, राजस्थान और मध्यप्रदेश सरकार के बीच परियोजना की संयुक्त डीपीआर बनाने के लिए नई दिल्ली में 28 जनवरी 2024 को त्रिपक्षीय एमओयू पर हस्ताक्षर हुए और दोनों राज्यों के बीच में विवाद की स्थिति समाप्त हो गई। यह एमओयू प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी, केन्द्रीय जलशक्ति मंत्री श्री गजेन्द्र सिंह शेखावत और मुख्यमंत्री श्री भजनलाल शर्मा के विशेष प्रयासों से ही संभव हो पाया।
राजस्थान की महत्वाकांक्षी परियोजना ईआरसीपी
एमओयू के अनुसार पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना में सम्मिलित रामगढ़ बैराज, महलपुर बैराज, नवनैरा बैराज, मेज बैराज, राठौड़ बैराज, डूंगरी बांध, रामगढ़ बैराज से डूंगरी बांध तक फीडर तंत्र, ईसरदा बांध का क्षमता वर्धन एवं पूर्वनिर्मित 26 बांधों का पुनरूद्धार किया जाएगा। जिससे इन बांधों में जल की उपलब्धता सुनिश्चित करने के साथ ही पूर्व सृजित 0.8 लाख हैक्टेयर सिंचित क्षेत्र पुनर्स्थापित किया जा सकेगा साथ ही 2.0 लाख हैक्टेयर नए क्षेत्र में सूक्ष्म सिंचाई पद्धति से सिंचाई सुविधा दी जा सकेगी। इस परियोजना के तहत उद्योंगो और दिल्ली मुंबई औद्योगिक कॉरिडोर (DMIC) के उपयोग के लिए भी 286 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी उपलब्ध कराया जाएगा। इतना ही नहीं ईआरसीपी के तहत राज्य में 6 बैराज और एक बांध का निर्माण भी होगा। इस बांध के पानी के माध्यम से ही 2 लाख हैक्टेयर नया सिंचित क्षेत्र विकसित किया जाएगा। प्रोजेक्ट में 15 स्थानों पर पंपिंग स्टेशन भी बनाए जाएंगे।
राजस्थान की महत्वाकांक्षी परियोजना ईआरसीपी
राज्य के बहुप्रतिक्षित पार्वती-कालीसिंध-चंबल ईस्टर्न राजस्थान कैनाल प्रोजेक्ट से प्रदेश के 21 जिलों को पर्याप्त मात्रा में पानी की उपलब्धता भी सुनिश्चित हो सकेगी। परियोजना का उद्देश्य वर्ष 2051 तक दक्षिण एवं दक्षिण-पूर्वी राजस्थान में मानव तथा पशुधन के लिए पीने के जल तथा औद्योगिक गतिविधियों हेतु जल की आवश्यकताओं को पूरा किया जाना है। इस योजना से दिल्ली-मुबंई इंडस्ट्रियल कोरिडोर प्रोजेक्ट के तौर पर राजस्थान में औद्योगिक विकास के नए रास्ते भी खुलेंगे। इससे राजस्थान और मध्यप्रदेश के लोगों को पार्वती, कालीसिंध और चंबल नदियों के पानी का भरपूर लाभ मिलेगा। इन नदियों के जल के बंटवारे से दोनों राज्यों के लाखों किसानों का जीवन बदलेगा। विकास की नई संभावनाएं खुलेंगी। पर्यटन से लेकर औद्योगिक विस्तार में तेजी आएगी।
पूर्वी राजस्थान की दशकों पुरानी मांग पूरी
राजस्थान के जल प्रबंधन को नए सिरे से विकसित करने के लिए एमओयू के दौरान पुराने ईआरसीपी प्रोजेक्ट को संशोधित कर नई डीपीआर बनाने की तैयारी की जा रही है। इसलिए इस परियोजना का नाम संशोधित ईआरसीपी-पीकेसी लिंक प्रोजेक्ट रखा गया है। संशोधित प्रोजेक्ट में 45 हजार करोड़ रुपए की लागत आएगी, जिसमें से 90 प्रतिशत अनुदान केन्द्र सरकार देगी। राज्य सरकार को सिर्फ 10 प्रतिशत राशि यानि करीब 4 हजार करोड़ रुपए ही देने होंगे। परियोजना को आगामी 5 वर्षों में पूरा करने के लक्ष्य निर्धारित किया गया है। एकीकृत ईआरसीपी परियोजना के मूर्त रूप लेने से पूर्वी राजस्थान की दशकों पुरानी मांग पूरी होने जा रही है। जो कि धरातल पर उतरने के बाद पूर्वी राजस्थान के लिए वरदान सिद्ध होगी।