राजस्थान के अजमेर जिले में स्थित तीर्थराज पुष्कर झील के किनारे स्थित है सृष्टि के रचनाकार और तीर्थों के गुरु ब्रह्माजी का मंदिर। शहर से करीब 12 किलोमीटर दूर अरावली पर्वत चोटी की नाग पहाड़ी के बीच स्थित दुनिया में ब्रह्मदेव का ये इकलौता मंदिर है, जिसकी स्थापना 14वीं सदी में हुई थी।
पुराणों के अनुसार, वज्रनाश नामक दैत्य के अत्याचारों से तंग आकर ब्रह्मा जी ने कमल के पुष्प से प्रहार कर उसका अंत किया। यह पुष्प धरती पर तीन जगह गिरा और वहां से जलधार बह निकली। ये तीनों स्थान ज्येष्ठ पुष्कर, कनिष्ठ पुष्कर और मध्य पुष्कर सरोवर के नाम से प्रसिद्ध हुए।
इसके बाद पुष्कर के शुद्धिकरण के लिए ब्रह्माजी ने एक महायज्ञ करने का निर्णय लिया, लेकिन पत्नी सावित्री के न पहुंचने से ब्रह्माजी ने गायत्री नामक गुर्जर कन्या से विवाह कर यज्ञ प्रारंभ कर दिया। ब्रह्माजी को किसी अन्य के साथ यज्ञ में बैठा देख सावित्री माता क्रोधित हो गई और ब्रह्माजी को यह श्राप देते हुए रत्नागिरी पहाड़ी पर विराजमान हो गई कि देवता होने के बावजूद उन्हें संपूर्ण पृथ्वी पर कहीं पूजा नहीं जाएगा। इसके बाद सभी देवता माता सावित्री से श्राप वापिस लेने की विनती करने लगे। इस पर सावित्री मां ने कहा कि ब्रह्मदेव की पूजा सिर्फ पुष्कर में की जाएगी। अन्य स्थान पर ब्रह्माजी का मंदिर बनाने का प्रयास किया गया तो उसका विनाश निश्चित है। यही वजह है कि पुष्कर के अलावा कहीं ओर ब्रह्माजी का मंदिर स्थापित नहीं है।
जिस रत्नागिरी पहाड़ी पर माता विराजमान हुईं, वहां सावित्री माता का मंदिर है, जबकि ब्रह्म मंदिर में ब्रह्माजी की मूर्ति के पास गायत्री की प्रतिमा स्थापित है जिसे ब्रह्माजी की दूसरी पत्नी कहा जाता है। ज्येष्ठ पुष्कर में ब्रह्माजी ने यज्ञ किया जिससे इस सरोवर को आदि तीर्थ होने का गौरव मिला।
ब्रह्माजी ने पुष्कर सरोवर में कार्तिक शुक्ला एकादशी से पूर्णिमा तक यज्ञ किया। तभी से इन पांच दिनों तक धार्मिक मेला आयोजित होता है, जहां हज़ारों की तादात में भक्त मनोकामना पूर्ति के लिए आते है। हिन्दू धर्मं में मान्यता है कि इन पांचों दिन दिन सभी देवी-देवता अंतरिक्ष से उतर पुष्कर में प्रवास करते है। 52 घाट वाले इस सरोवर में स्नान करने मात्र से मनुष्य को सभी पापों से छुटकारा मिल जाता है।