देश की पारम्परिक लोक कला एवं गौरवशाली संस्कृति की छटा बिखेरता ‘लोकरंग’

राजस्थान समेत विभिन्न प्रदेश की लोक कलाओं और देशप्रदेश की कला एवं संस्कृति से रूबरू कराने का मंच है लोकरंग

लोकरंग उत्सव: देशभर में फैली लोक संस्कृति की अनूठी और विस्तृत छटा बिखेरता एक फेस्टिवल। लोकरंग में राजस्थान सहित देशभर के विभिन्न राज्यों के कलाकार मिलकर एक ही मंच पर विभिन्न प्रदेशों की रंगबिरंगी संस्कृति की छटा बिखेरते हुए नजर आते हैं। जयपुर के जवाहर कला केंद्र में लोकरंग की 25वीं रजत जयंती मनाई जा रही है। यही वजह है कि यह आयोजन पहले से भव्य हो रहा है। इस सांस्कृतिक अनुष्ठान में हर राज्य के देशभर से आए 3 हजार से अधिक कलाकार लोक संगीत एवं लोक नृत्यों की प्रस्तुति देते हुए अपनेअपने क्षेत्र की लोक कलाओं का प्रदर्शन कर रहे हैं।   

विगत 25 वर्षों से कलाकारों को दिया जा रहा मंच

वैसे तो लोकरंग का आयोजन पिछले 25 सालों से राजस्थान समेत विभिन्न प्रदेश की लोक कलाओं को मंच प्रदान करने के लिए किया जा रहा है ताकि सभी देश एवं राज्यों की गौरवशाली कला और संस्कृति से रूबरू हो सकें। लेकिन हर बार यह सांस्कृतिक महोत्सव पहले से कहीं बेहतर और मन मनोहर लगता है।

इस राष्ट्रीय सांस्कृतिक आयोजन में राजस्थान, गुजरात, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, तमिलनाडू, असम, गोवा, बिहार, पंजाब, जम्मू, कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड, झारखंड, केरल, छत्तीसगढ़, नागालैण्ड, आन्ध्र प्रदेश, ओडिसा, मणिपुर एवं महाराष्ट्र की पारम्परिक लोक कलाओं का प्रदर्शन किया जाता है, जिनमें शहनाईनगाड़ा, तीन ढोल, कठपुतली, नट, अलगोजा नृत्य, बहुरूपिया, जादू कला, कालबेलिया और बम रसिया की मनभावन प्रस्तुतियां देखने लायक होती हैं।

कालबेलिया से लेकर गरबा एवं भांगडाझूमर की धमक

लोकरंग में राजस्थान का कालबेलिया, घूमर, चरी, भवई, चकरी लोक नृत्य एवं लंगा मांगणियार गायन, असम का बिहू, उत्तर प्रदेश का ढेडिया झूमर नृत्य, मध्यप्रदेश का बधाई नृत्य सेला करमा, गुजरात का गरबा सिद्धी धमाल डांडिया रास, तमिलनाडू का थप्पटमओलियटम लोकनृत्य, उडीसा का सम्बलपुरी गोटीपुआ, मणिपुर का पूंग चोलम, महाराष्ट्र का लावणी/कोली, छत्तीसगढ़ का गेडी, जम्मू का डेगरी, कश्मीर का रउफ, बिहार का लोकनृत्य, हिमाचल का सिरमोर नाटी, हरियाणा का घूमर फाग, उत्तराखंड का छपेली, झारखंड का मुंडारी लोकनृत्य, पंजाब का भांगडाझूमर और नागालैंड का हॉर्नबिल नृत्य मंत्र मुग्ध करने वाले हैं।

इनके अलावा, राजस्थानी सहरिया स्वांग नृत्य, वाद्य वृन्द ढूंढाडी लोक गायन, आंध्रप्रदेश का चेका बजाना, गुजरात का टीपणी, मणिपुर का थांगता, छत्तीसगढ़ का ककसार नृत्य, महाराष्ट्र का कोली नृत्य एवं उडीसा का डालखई और शहनाई नगाड़ा, कच्छी घोड़ी, कठपूतली, बहरूपिया और भरतपुर की नटकला आदि का अपना अलग ही महत्व है।

हस्तशिल्प उत्पादों पर कलाकारी के अलग हैं आयाम

सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के अलावा, राष्ट्रीय हस्तशिल्प मेले का आयोजन भी यहां किया जाता है। इस मेले में राजस्थान सहित अन्य राज्यों के पुरस्कृत एवं राज्य स्तर पर पुरस्कृत शिल्पियों द्वारा निर्मित कलात्मक हस्तशिल्प उत्पादों की प्रदर्शनी बिक्री के लिए लगाई जाती है। इनके अलावा, देशभर के विभिन्न स्वादिष्ठ पकवानों का जायका भी आपके लिए यहां रखा जाता है। राजस्थान के दाल बाटी से लेकर केरल के इडली सांभर तक की सुगंध से अपने आप को दूर रख पाना मुश्किल है।

देश एवं राज्यों की संस्कृति से रूबरू कराने वाला ये लोकरंग मंच सच्चे मायनों में एक क्रांतिकारी पहल है। इससे युवा वर्ग को देश की पारम्परिक संस्कृति से साक्षात्कार करने का अवसर मिलेगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *